सूरतगढ़:- सरकारी उपेक्षा में दफन हो रही प्राचीन रंगमहल सभ्यता

100 साल पहले हुई थी खुदाई, आज भी जमीन से बाहर निकलते हैं सभ्यता के अवशेष, लेकिन ASI की अनदेखी से उजाले में आने से वंचित

संजय चौधरी | सूरतगढ़ (श्रीगंगानगर)

राजस्थान के सामान्य ज्ञान में जिस रंगमहल सभ्यता का बड़े गर्व से उल्लेख किया जाता है, वह आज सरकारी उदासीनता की वजह से मिट्टी में दबी पड़ी है। श्रीगंगानगर जिले की सूरतगढ़ तहसील से कुछ किलोमीटर दूर स्थित गांव रंगमहल के थेहड़ क्षेत्र में वर्ष 1916 से 1919 तक इटली के पुरातत्वविद् डॉ. एल. वी. टेसीटोरी के नेतृत्व में खुदाई हुई थी। इस दौरान देवी-देवताओं की नक्काशीदार मूर्तियां, मिट्टी के बर्तन और तांबे जैसी धातु के सिक्के प्राप्त हुए थे। इसके बाद 1952 में डॉ. हन्ना रिड ने भी यहां खुदाई करवाई, लेकिन काम अधूरा ही रह गया।

सभ्यता के अवशेष को लोगों ने अपने घरों में सजाया

बरसात के मौसम में पानी के बहाव के कारण आज भी थेहड़ की जमीन से बर्तन, मूर्तियां, चूड़ियां और सिक्के बाहर आ जाते हैं। ग्रामीण इन ऐतिहासिक वस्तुओं को अपने घरों में ले जाते हैं। गांव में कई लोगों के पास आज भी ये अवशेष सुरक्षित हैं। उत्तरप्रदेश के आनंदवन से आए प्रो. मृगेन्द्रा विनोद महाराज भी इस स्थल का कई बार निरीक्षण कर इसे सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ा महत्वपूर्ण पुरातात्विक केंद्र मान चुके हैं।

संरक्षित क्षेत्र में कागजों में ही आता है चौकीदार


भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने रंगमहल के थेहड़ को संरक्षित घोषित कर बोर्ड भी लगाया है, जिसमें छेड़छाड़ करने पर दंड का प्रावधान है। कागजों में तो यहां चौकीदार तैनात है, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने कभी किसी चौकीदार को यहां नहीं देखा।

गांव रंगमहल में स्थित प्राचीन तालाब भी इतिहास का अद्भुत नमूना है। ग्रामीणों के अनुसार यह तालाब सिंधु घाटी सभ्यता के समय का है, जिसका तल पीतल का बना हुआ है। अब तक 52 सीढ़ियां खुदाई में सामने आ चुकी हैं, लेकिन इसका तल अभी तक नहीं खोजा जा सका है। तालाब की तीन दीवारें बनी हुई हैं और एक ओर से घग्घर नदी से पानी आने के लिए खुला छोड़ा गया है। स्थानीय मान्यता है कि पास के लाखा बनजारे के महल से इस तालाब तक सुरंग थी, जहां से उसके घोड़े पानी पीने आया करते थे।

गौरतलब है कि रंगमहल से प्राप्त अनेक मूर्तियां आज दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय, जयपुर और बीकानेर के राजकीय संग्रहालयों में सुरक्षित हैं, लेकिन जिस भूमि से ये ऐतिहासिक धरोहरें निकलीं, वह उपेक्षा का शिकार है। ग्रामीणों और इतिहास प्रेमियों की मांग है कि इस क्षेत्र की समुचित खुदाई कर इसे संरक्षित किया जाए और एक प्रमुख पुरातात्विक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए।


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