आजादी के बाद भीलखण्ड को चार राज्य में बांटने का दुष्परिणाम ही आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र का पिछड़ापन – राजकुमार रोत

संवाददाता / सादिक़ अली

बाँसवाड़ा। भीलप्रदेश की वर्षों पुरानी मांग को लेकर आयोजित भीलप्रदेश संदेश यात्रा इस वर्ष भी ऐतिहासिक स्थल मानगढ़ धाम में सम्पन्न हुई। यात्रा में राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और दादरा नगर हवेली जैसे विभिन्न राज्यों से आए जनप्रतिनिधियों, सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों, युवा कार्यकर्ताओं एवं बड़ी संख्या में आमजन, विशेषकर आदिवासी समुदाय के लोगों ने भागीदारी निभाई।

इस मौके पर आयोजित सभा में वक्ताओं ने एक स्वर में पृथक भीलप्रदेश राज्य के गठन की मांग को दोहराया। वक्ताओं ने कहा कि यह आंदोलन आदिवासियों के सम्मान, पहचान, अधिकार और स्वशासन की स्थापना के लिए है।

“भीलखण्ड का बँटवारा बना पिछड़ेपन का मुख्य कारण” —सांसद राजकुमार रोत

सभा को संबोधित करते हुए राजस्थान के डूँगरपुर -बाँसवाड़ा सासंद सांसद राजकुमार रोत ने कहा कि आजादी के बाद जब राज्यों का पुनर्गठन किया गया, तब आदिवासी बहुल भीलखण्ड को चार अलग-अलग राज्यों में बाँट दिया गया। इस बँटवारे के कारण इन क्षेत्रों में विकास की योजनाओं का एक समान क्रियान्वयन नहीं हो सका और भील समाज का ऐतिहासिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक पिछड़ापन लगातार बना रहा।

उन्होंने कहा कि —

  • भील समाज ने हमेशा राष्ट्र की रक्षा और समृद्धि में योगदान दिया, लेकिन उन्हें आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। यह संविधान की आत्मा के भी विपरीत है।

मानगढ़ धाम — आदिवासी स्वाभिमान का प्रतीक स्थल

कार्यक्रम में यह भी बताया गया कि मानगढ़ धाम पूरे देश के आदिवासी समाज के लिए एक राष्ट्रीय शहीद स्थल जैसा है। वर्ष 1913 में महात्मा गोविंद गुरू के नेतृत्व में यहाँ 1500 से अधिक भील आदिवासी एकत्रित हुए थे, जो अपने अधिकारों और आजादी की माँग कर रहे थे। लेकिन ब्रिटिश हुकूमत ने उन पर गोलियाँ चलवा दीं, जिसमें एकसाथ हजारों की संख्या में आदिवासी शहीद हुए।

इस ऐतिहासिक हत्याकांड को आज भी “मानगढ़ नरसंहार” के रूप में याद किया जाता है। कार्यक्रम में मौजूद हर वर्ग ने इस धाम को राष्ट्रीय शहीद स्थल का दर्जा देने की मांग को फिर से जोर-शोर से उठाया।

तीन मुख्य मांगें रही सभा का केंद्रबिंदु

सभा में पारित प्रस्तावों के तहत तीन मुख्य मांगों को रेखांकित किया गया, जिनमें –

  1. राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र एवं दादरा नगर हवेली के आदिवासी बहुल 49 जिलों (कुछ पूर्ण, कुछ आंशिक) को मिलाकर पृथक भीलप्रदेश राज्य का गठन किया जाए।
  2. मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय शहीद स्थल घोषित किया जाए ताकि इसकी ऐतिहासिकता को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिले।
  3. संविधान की पाँचवीं अनुसूची के प्रावधानों को प्रभावी रूप से लागू किया जाए, जिससे आदिवासी क्षेत्रों को वास्तविक अधिकार और संरक्षण मिल सके। इसके साथ ही आरक्षण व्यवस्था को इन क्षेत्रों में सख्ती से लागू किया जाए।

जनप्रतिनिधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने दिया समर्थन

सभा को गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश एवं राजस्थान के विभिन्न जिलों से आए सामाजिक कार्यकर्ताओं, पंचायत प्रतिनिधियों, जनजातीय नेताओं व युवाओं ने संबोधित किया। उन्होंने कहा कि भील समाज आज भी जल, जंगल और जमीन के लिए संघर्ष कर रहा है, जो लोकतांत्रिक भारत के लिए चिंताजनक है।

भीलप्रदेश संदेश यात्रा के आयोजकों ने भील समाज की एकता और सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए लोगों से जागरूकता फैलाने की अपील की।

समापन पर सामूहिक प्रतिज्ञा

सभा के अंत में हजारों की संख्या में मौजूद आदिवासी जनों ने एक स्वर में भीलप्रदेश के गठन, मानगढ़ धाम की गरिमा को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने और समाज के अधिकारों की रक्षा के लिए निरंतर संघर्ष करने की सामूहिक प्रतिज्ञा ली।


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