कुलदीप छंगाणी : पोकरण ( जैसलमेर )
यह तस्वीर किसी फिल्म का दृश्य नहीं, बल्कि पोकरण के सरकारी अस्पताल की सच्चाई बयां कर रही है।
फोटो में दिख रही यह बुजुर्ग महिला इलाज के दौरान टूटी हुई अस्पताल की खाट पर पड़ी है ,वही खाट जो उसके शरीर से ज़्यादा थकी हुई और टूटी हुई लगती है। चारों तरफ जर्जर दीवारें, गंदगी और टूटा बेड… यह दृश्य इस जिले के स्वास्थ्य तंत्र की हकीकत बयान करता है।
जिस अस्पताल में लोगों को नई उम्मीद मिलनी चाहिए, वहां मरीजों को टूटी चारपाइयों पर दिन बिताने पड़ रहे हैं। बुजुर्ग मां की यह हालत देखकर कोई भी संवेदनशील मन व्यथित हो उठेगा — क्या यही है “जनसेवा” का चेहरा? क्या यही है उस गरीब की “आखिरी उम्मीद” का सहारा?
थार क्रॉनिकल कई बार चिकित्सा अधिकारी अनिल गुप्ता को पोकरण अस्पताल की लचर व्यवस्था से अवगत करा चुका है, लेकिन लगता है वो चाहते ही नही कि व्यस्वथा में सुधार के लिए कोई खास कदम उठाए जाने चाहिए । जब भी थार क्रॉनिकल की टीम चिकित्सा अधिकारी से संपर्क करने की कोशिश करती है तो वे या तो फोन नही उठाते या अपनी जिम्मेदारी से भागते नजर आते है । अब सवाल है कि आखिर क्यों ? यहां के जनप्रतिनिधि ने ऐसे अधिकारी को जिला चिकित्सालय की कमान सौंप रखी है जो चिकित्सालय की व्यवस्था में सुधार के लिए हमेशा ही उदासीन नजर आते है ।
पोकरण जैसे छोटे शहरों में अस्पताल ही लोगों की आखिरी आस होते हैं, लेकिन यह तस्वीर बताती है कि यहां मरीज नहीं, बल्कि व्यवस्था खुद बीमार पड़ी है।
स्थानीय लोग मांग कर रहे हैं कि अस्पताल प्रशासन जल्द से जल्द सुधारात्मक कदम उठाए, ताकि कोई और मां इस तरह टूटी हुई खाट पर अपनी मजबूरी का दर्द न झेले।
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