कुलदीप छंगाणी / पोकरण
सरकारी दफ्तरों की कार्यशैली अक्सर लोगों को हैरान करती है, लेकिन इस बार तो पोकरण के तहसील विभाग ने हद ही कर दी। दरअसल पोकरण के केलावा गांव की रहने वाली
11 साल की रुकसाना पुत्री रऊफ खान ने सितंबर माह में ऑनलाइन मूल निवास प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया था। आवदेन पोकरण के तहसील विभाग में पहुंचा जो मूल निवास बनाने का काम करता है । अब बाबू साहब के पास फाइल पहुंची तो बाबू ने 3 नवंबर को फाइल पर एक टिप्पणी लिखी— “पति का मूल निवास लगाओ या ससुर का?” —और आवेदन को सेंड बैक कर दिया।

बस फिर क्या था , घर में हड़कंप मच गया। रुकसाना के पिता रऊफ खान ने हैरानी जताते हुए कहा, “बाबू साहब को बताएं कि हमारी बेटी अभी 11 साल की है, उसका तो स्कूल का एडमिट कार्ड भी नया बना है । पति का मूल निवास कहां से लाएं?”
रुकसाना के भाई इनाम मेहर को जब यह जानकारी मिली तो तो वह सोमवार को तहसीलदार साहब को लिखित में पूछने चला गया कि सरकार ने क्या 11 साल की लड़की को शादी की अनुमति प्रदान कर दी है ? अगर ऐसा कोई नया नियम आया है तो हमें भी बताए ताकि हम रुकसाना की शादी करवाकर मूल निवास बना सके । इनाम मेहर ने बताया कि जब वह तहसील कार्यालय गया तो उसे वहां जवाब देने वाला कोई नहीं मिला ।

अब रुकसाना के परिजन तहसील कार्यालय के चक्कर लगा रहे हैं । कभी बाबू को समझा रहे हैं कि बेटी नाबालिग है, तो कभी सिस्टम को। लेकिन सिस्टम तो वही पुराना सरकारी है, जहां “कॉमन सेंस” का कॉलम अक्सर खाली रहता है।
तहसील विभाग कि यह लापरवाही शहर में चर्चा का विषय बन गई और लोग कहने लगे कि अगर तहसील बाबू का यही ज्ञान है, तो अगली बार शायद जन्म प्रमाण पत्र के साथ शादी का कार्ड भी लगाना पड़ेगा।
अब सवाल यह है — क्या विभागीय प्रशिक्षण में यह सिखाया जाता है कि हर महिला विवाहित ही होती है, चाहे उम्र ग्यारह की क्यों न हो?
इस पूरे मामले को लेकर जब थार क्रॉनिकल ने विभाग के एक बाबू से बात की तो वह अपने जिम्मेदारी से भागता नजर आया और फोन काट दिया ।
जब हमने तहसीलदार हजारीमल से बात की और पूरा मामला समझाया तो उन्होंने कहा “यह एलडीसी की मानवीय भूल से हुआ है। उसे आगे से इस तरह की गलती नही करने दूंगा । इस मामले में हुई गलती को मैं तुरंत ठीक करवाता हूं।”
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