बालोतरा, मुकेश खारवाल
राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत में रचे-बसे पर्व और परंपराएं आज भी जीवंत हैं। ऐसा ही एक विशेष आयोजन है ‘समंदर हिलोरा’, जो भाई-बहन के अटूट प्रेम और दीर्घायु की कामना से जुड़ा है। श्रावणी तीज के अवसर पर इस अनोखी परंपरा का आयोजन क्षेत्र के कई हिस्सों में श्रद्धा और उल्लास के साथ हुआ।

श्रावणी तीज पर तालाब पूजन और ‘समंदर हिलोरा’ की रस्म
बालोतरा क्षेत्र में रविवार को किटनोद की नाड़ी और मरूगंगा लूणी नदी किनारे परंपरागत ढंग से ‘समंदर हिलोरा’ पर्व मनाया गया। सूरज की पहली किरण के साथ ही भाई-बहनों का तालाब की ओर जाना प्रारंभ हो गया। यहां तालाब की पूजा-अर्चना के साथ घुघरी मातर का भोग लगाया गया। इसके बाद भाई-बहन एक-दूसरे को जल पिलाकर परंपरा निभाते हैं। भाई अपनी बहनों को चुनरी ओढ़ाकर और उपहार देकर उनका आशीर्वाद लेते हैं।
मटके से जुड़ी है ‘समंदर हिलोरा’ की परंपरा
परंपरा के अनुसार भाई और बहन तालाब के पानी में मटका डालकर उसे हिलाते हैं — जिसे स्थानीय भाषा में ‘समंदर हिलोरा’ कहा जाता है। जैसे ही मटके में पानी भर जाता है, बहनें उसे सिर पर उठाती हैं और फिर भाई अपने हाथों से बहन को पानी पिलाता है। यह क्रिया भाई की लंबी उम्र और परिवार की सुख-शांति के लिए की जाती है।

मटकों की कलाकृति बनी आकर्षण का केंद्र
इस अवसर पर पारंपरिक रूप से सजाए गए मटके लोगों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र रहे। मटकों पर उकेरी गई राजस्थानी कलाकृति ने सभी का ध्यान खींचा। वहीं, महिलाओं ने पारंपरिक गीत गाकर समंदर हिलोरा परंपरा को जीवंत किया।
इस आयोजन में कुल 21 महिलाओं ने भाग लिया — जिनमें 15 कलबी समाज और 6 माली समाज की महिलाएं थीं। कलबी समाज की महिलाओं ने किटनोद की नाड़ी में जबकि माली समाज की महिलाओं ने लूणी नदी किनारे रस्म अदा की। कार्यक्रम के अंत में रेहाण और प्रसादी का आयोजन भी हुआ।
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