
जैसलमेर ।
जैसलमेर, जो एक समय ऊंटों की बड़ी आबादी के लिए प्रसिद्ध था, अब धीरे-धीरे ऊंटों की घटती संख्या से जूझ रहा है। अंतर्राष्ट्रीय ऊंट दिवस के अवसर पर यह चिंता और भी प्रासंगिक हो जाती है। वर्तमान में जिले में लगभग 40,000 ऊंट हैं, लेकिन इनकी संख्या निरंतर गिरावट की ओर है।
ऊंटों के संरक्षण की दिशा में कार्य कर रहे श्री देगराय ऊंट संरक्षण संस्थान जैसलमेर के अध्यक्ष सुमेर सिंह भाटी सावता का कहना है कि केवल श्री देगराय ओरण क्षेत्र में कभी करीब 5,000 ऊंट थे, लेकिन अब वह संख्या भी कम हो रही है।
भाटी बताते हैं कि “ऊंट पालन अब आय का जरिया नहीं रह गया है, जिससे युवा वर्ग का ऊंटों की ओर आकर्षण घटता जा रहा है। राज्य सरकार की ऊँट प्रजनन योजना के तहत मिलने वाली सहायता भी पशुपालकों तक समय पर नहीं पहुँचती, जिससे उन्हें निराशा होती है और वे ऊंट पालन छोड़ने को मजबूर हैं।”






ऊंटों के चरने के लिए जरूरी चारागाह भूमि भी अब विकास कार्यों की भेंट चढ़ती जा रही है। नई सड़कें, कॉलोनियां और अन्य निर्माण कार्य इन भूमि क्षेत्रों को निगल रहे हैं, जिससे ऊंटों के लिए पर्याप्त चारा नहीं बचता।
भविष्य की दिशा की बात करें तो विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ सही तरीके से और नियमित रूप से पशुपालकों तक पहुँचाया जाए, तो ऊंट संरक्षण को नया जीवन मिल सकता है।
सुमेर सिंह भाटी ने इस बात पर भी जोर दिया कि ऊंटनी का दूध स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होता है। इसमें शुगर और फैट की मात्रा कम होने से यह मधुमेह रोगियों के लिए भी उपयोगी है। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि सरकार आगे आकर ऊंटनी के दूध के लिए डेयरी उद्योग को बढ़ावा दे, जिससे पशुपालकों को आय का एक नया जरिया मिल सके।
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