Tuesday, August 19, 2025
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आंधळ्या ने आंख्याँ देवे… नेत्रकुम्भ में उमड़ी सेवा-भावना की अनोखी मिसाल

रामदेवरा।
“आंधळ्या ने आंख्याँ देवे, आँख वाळा ने चश्मों जी… घणी-घणी खम्मा बाबा रामदेव जी” — यही पंक्तियाँ बाबा के भक्तों की जुबान पर गूंज रही हैं। लोकदेवता बाबा रामदेवजी की प्रेरणा से आयोजित नेत्रकुम्भ महाजाँचशिविर सेवा, करुणा और संवेदनशीलता की पुण्यभूमि बन गया है।

सेवा और अपनत्व का वातावरण

नेत्रकुम्भ में डॉक्टर से लेकर सुरक्षा जाँच करने वाला भाई तक हर आने वाले जातरू का स्वागत ऐसे कर रहा है मानो शबरी के घर प्रभु श्रीराम पधारे हों। व्यवस्थाओं और आतिथ्य से प्रभावित होकर भक्तों की भीड़ सुबह से ही बस, जीप और ट्रैक्टरों से सीमावर्ती गाँवों से उमड़ रही है।

वृद्धजन हो रहे लाभान्वित

कई वृद्धजन, जिन्होंने जीवन में कभी नेत्रजाँच नहीं करवाई, अब यहाँ नि:शुल्क सेवाओं का लाभ उठा रहे हैं। उन्हें न केवल दवाइयाँ और चश्मे मिल रहे हैं, बल्कि डॉक्टरों से अपनत्व पाकर वे अपने मन की पीड़ा भी साझा कर रहे हैं।

स्काउट और गाइड की सेवा

भारत स्काउट और गाइड के युवा भी यहाँ सेवाकार्य में जुटे हैं। रोगियों को दिशा-निर्देश देने से लेकर प्रबंधन तक अपनी भूमिका निभाते हुए वे सेवा का विलक्षण अनुभव प्राप्त कर रहे हैं। यह अनुभव उनके जीवन में सहिष्णुता और परोपकार के संस्कार भी जोड़ेगा।

भोजन-प्रसाद और दवा-चश्मा वितरण

बाबा के भक्तों के लिए नि:शुल्क जलपान और भोजन-प्रसाद की व्यवस्था की गई है। शुद्ध और उच्च गुणवत्ता वाले भोजन, विश्राम की सुविधा और पूजा-अर्चना के साथ-साथ भक्तों को दवा और चश्मे भी नि:शुल्क उपलब्ध कराए जा रहे हैं।

एक दिन की उपलब्धियाँ

15 अगस्त को एक ही दिन में—

  • 3243 लोगों का पंजीयन हुआ
  • 3183 लोगों की नेत्रजाँच की गई
  • 2456 लाभार्थियों को नि:शुल्क चश्मे प्रदान किए गए
  • 2638 लोगों को दवाइयाँ दी गईं

नेत्रकुम्भ ने यह सिद्ध कर दिया है कि बाबा रामदेवजी की प्रेरणा से की गई सेवा केवल चिकित्सा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह लोगों के जीवन में विश्वास, सहारा और संवेदना का प्रकाश भी फैला रही है।


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