Sunday, December 14, 2025
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आगरा से जिम्मेदारियों का भार ढोता रामदेवरा मेले में पहुंचा 12 साल का प्रशांत

कुलदीप छंगाणी | जैसलमेर

जैसलमेर के रामदेवरा में इन दिनों राजस्थान का सबसे बड़ा धार्मिक मेला, रुणिचा का मेला, अपने पूरे शबाब पर है। दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु बाबा रामदेव के दर पर हाजिरी देने आते हैं। कोई भक्ति भाव से, तो कोई आस्था से यहां पहुंचता है। लेकिन इस भीड़ में एक ऐसा चेहरा भी है, जो न आस्था से आया है और न ही मनोकामनाएं लेकर – बल्कि जिम्मेदारियों का बोझ ढोते हुए यहां तक पहुंचा है।

यह चेहरा है उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के सादाबाद कस्बे के रहने वाले 12 साल के प्रशांत का। महज बारह साल की उम्र में वह 728 किलोमीटर दूर रामदेवरा आया है। कारण? परिवार का पेट पालना और मां का इलाज कराना।

फोटो : ग्राहकों को पायल दिखाता प्रशांत

पिता के निधन के बाद घर की जिम्मेदारियों ने छीना बचपन

प्रशांत की आंखों में चमक है, लेकिन वह चमक बचपन की नहीं बल्कि जिम्मेदारी की है। वह बताता है

“पापा नहीं रहे, मैं चार बहनों में अकेला भाई हूं। मां टीबी की बीमारी से बिस्तर पर हैं… तो क्या करें साब, काम तो करना ही पड़ेगा।”

प्रशांत के पिता का निधन तब हो गया था जब वह केवल पांच साल का था। पहले मां ने खेतों में मजदूरी करके घर संभाला, लेकिन बीमारी ने उन्हें भी जकड़ लिया। अब घर की पूरी जिम्मेदारी प्रशांत के कंधों पर आ गई है। आठ साल की उम्र से ही वह मजदूरी कर रहा है। रामदेवरा मेले में प्रशांत आगरा से लायी हुई पायल बेच रहा है। चार जोड़ी पायल वह सौ रुपये में देता है। यही उसका रोज़गार है। दिनभर मेहनत के बाद वह दो-तीन सौ रुपये कमा लेता है।

“यहीं से पैसे ले जाकर मैं मां का इलाज करवाऊंगा। हमारे गांव के सरकारी अस्पताल में इलाज नहीं होता, प्राइवेट में ले जाना पड़ता है और उसका खर्च बहुत ज्यादा है,” – प्रशांत कहता है।

प्रशांत को यह रास्ता अपनी मां की बातों से मिला। वह बताता है “मां कहती थी कि पापा रामदेवरा मेले में आगरा से सामान लाकर बेचते थे। इस बार गांव से कुछ यात्री यहां आ रहे थे तो मैं भी पायल लेकर उनके पीछे-पीछे चला आया।” प्रशांत की दो बहनों की शादी हो चुकी है, लेकिन जीजा मदद नहीं करते। बाकी दो छोटी बहनों और बीमार मां का बोझ अकेले उसी पर है।

प्रशांत न तो किसी परीक्षा में अव्वल आया है, न ही खेल के मैदान में कोई मेडल जीता है। लेकिन वह अपने परिवार का असली हीरो है। छोटी-सी उम्र में उसने जिम्मेदारियों का इतना बड़ा पहाड़ अपने कंधों पर उठा रखा है। उसकी आवाज में दुख कम, हिम्मत और जिम्मेदारी ज्यादा है। शायद यही उसे औरों से अलग बनाता है


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KULDEEP CHHANGANI
KULDEEP CHHANGANIhttp://tharchronicle.com
कुलदीप छंगाणी थार क्रॉनिकल के प्रबंध संपादक हैं। वे एक ऐसे पत्रकार हैं जो ख़बरों की गहराई, तथ्यों की प्रामाणिकता और सामाजिक सरोकारों को सर्वोपरि रखते हैं। उनकी कार्यशैली तेज़ रिपोर्टिंग, सटीक विश्लेषण और जनहित पर आधारित है। राजस्थान के ज़मीनी मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाने में उनका योगदान सराहनीय है। मीडिया की जिम्मेदारी निभाते हुए वे हर वर्ग की आवाज़ को स्थान देने के प्रति प्रतिबद्ध हैं।
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