21 साल से न्याय की राह: सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद 748 लोक जुम्बिश कार्मिकों की नियुक्ति लंबित

“कब मिलेगा हक़?”—हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक जीत, फिर भी आदेश की पालना का इंतज़ार

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748 लोक जुम्बिश कार्मिकों को हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक जीत मिली, फिर भी नियुक्ति लंबित। 18 मार्च 2025 के आदेश की पालना कब? पढ़ें पूरी रिपोर्ट।

जयपुर, 16 अगस्त 2025 | थार क्रॉनिकल डेस्क
राजस्थान के 13 जिलों के 748 पूर्व लोक जुम्बिश परियोजना कार्मिकों को सुप्रीम कोर्ट से लेकर राजस्थान हाईकोर्ट तक लगातार जीत मिलने के बाद भी अभी तक नियुक्ति आदेश नहीं मिला है। पीड़ित कार्मिकों ने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से अपील करते हुए कहा है कि “अदालतों से न्याय मिल चुका है, अब सरकार से न्याय पाना बाकी है।”


क्या है मामला?

वर्ष 2002 में लोक जुम्बिश परियोजना के तहत प्राथमिक व महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए संकुल सहयोगी, प्रशिक्षिका, शिक्षाकर्मी, विस्तार केंद्र प्रभारी, संकुल प्रभारी, लिपिक, चपरासी आदि पदों पर कार्मिक लगाए गए थे। यह नियुक्तियां प्लेसमेंट एजेंसी—भूतपूर्व सैनिक वेलफेयर सोसायटी के माध्यम से हुईं।
30 जून 2004 को इन कार्मिकों को बिना औपचारिक आदेश के कार्यमुक्त कर दिया गया। बाद में 948 अनुबंधित कार्मिक सर्व शिक्षा अभियान में समायोजित कर दिए गए, लेकिन 748 कार्मिक आज तक बाहर हैं।


भूगोल और दायरा

परियोजना का कार्यक्षेत्र व्यापक था—102 विकासखंड, 13,763 ग्राम पंचायतें, 16,420 राजस्व गाँव और 57 शहरी क्षेत्र। इसमें पश्चिमी राजस्थान का रेगिस्तानी इलाका और दक्षिणी राजस्थान का आदिवासी बेल्ट शामिल था। संबंधित जिले: जोधपुर, पाली, चित्तौड़गढ़, जैसलमेर, बाड़मेर, जालोर, बीकानेर, उदयपुर, बारां, डूंगरपुर, राजसमंद, बांसवाड़ा और भरतपुर


अदालत दर अदालत: 21 साल की कानूनी जंग — टाइमलाइन

  • 28 मार्च 2007 | राजस्थान हाईकोर्ट (एकलपीठ): रिट पिटीशन 4945/2004748 कार्मिकों की सेवा बहाली के पक्ष में फैसला।
  • 23 जनवरी 2018 | राजस्थान हाईकोर्ट (डबल बेंच): सरकार की डी.बी. स्पेशल अपील रिट 525/2007 खारिज—एकलपीठ का फैसला बरकरार।
  • 18 मार्च 2025 | सुप्रीम कोर्ट, नई दिल्ली: राज्य सरकार की SLP 1402–1411/2019 (डायरी 41465/2018) खारिज—हाईकोर्ट डबल बेंच का निर्णय यथावत।

पीड़ित पक्ष का कहना है कि तीन-तीन स्तरों पर जीत के बावजूद आदेश की व्यावहारिक पालना (नियुक्ति) नहीं हो पाई है।


पीड़ितों की बात

  • “हम गरीब परिवारों से हैं, दो दशक से बेरोज़गारी झेल रहे हैं।”
  • “सरकार कोर्ट के आदेश की अक्षरश: पालना करे और नियुक्ति दे।”
  • “हमारे अनुभव और सेवा को मान्यता मिले—सम्मानजनक वापसी चाहिए।”

सार्वजनिक हित का सवाल

यह मामला सिर्फ 748 परिवारों का नहीं, सरकारी आदेशों की विश्वसनीयता और न्यायालयीन निर्णयों के सम्मान का भी है। अदालतों के निर्णय तभी सशक्त बनते हैं जब उनकी पालना जमीन पर दिखे—खासकर शिक्षा जैसी संवेदनशील परियोजनाओं में, जहाँ हर नियुक्ति स्कूल और समुदाय तक असर डालती है।


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